कडवा सच या सिधा सा समिकरण

यह लेख मैने ऐक बंगाली हिंदु ग्रुप से लिया हैं। लेख पढते ही ही मैने इसे बंगाली सें हिंदी में अनुवाद किया। लेखक का नाम नही बाताया गया था शायदि यह आज की हालातो का असर ही हो।

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कडवा सच या सिधा सा समिकरण

यह तो पानी की तरह साफ हैं, किसी को बताने की जरूरत नहीं हैं बी ऐन पी (खालिदा जिया की पार्टी) जमात हमारे चिरकालिन शत्रु रहे हैं अर्थात उनके बारे में लिख कर गले मूर्दे उठाकर पुरानी बातो को दहूराना नही चाहूंगा, पर अवामी लिग के बारे में कया कहा जाय….। यदि हम कहे कि अवामी लिग हमरे ही द्वारा पाला पोसा हूआ ऐक जहरिला साप है तो कया गलत होगा!!! ..चलिऐ इस पर थोडा सोच विचार करते हैं….इत्हास देखिऐ अच्छी तरह, देश स्वाधीन होते न होते ही बंगबंधु शेख मूजिबर रहमान कट्टरपंथी इसलामी संघठन ओ-आई-सी का सदस्य होने हेतु दौडे थे और सदस्यता हासिल की थी। जो हिंदु देश छोडकर हिंदुस्तान पलायन कर गऐ उनकी संपती हूई थी शत्रु-संपती। बंगाली राष्ट्रवाद के नाम पर देश स्वाधीन होते ही प्रचलित शिक्षा वेवस्था होने के वावजूद मदरासा बोर्ड का गठन किया गया था जैसे इसलामी चेतना और विचारधारा समनित ऐक सेना त्यार की जा सके। रोमना काली बाडी और आनंनदोमोई आश्रम बूलडोजर से विनाश कर यह सारी संपति सरकारी संपती करार दी गई। और रही कसर बंगाली जातियवाद दी दुहाई देकर बंगलादेश में हिंदु अल्पसंख्यक को दिया गया आरकक्षण भी हठाया गया, खैर जो भी हो वे (शेख मजूबर हरमान) हमारे राष्ट्रपिता थे, उनके उठाऐ गऐ कदमो को हम आलोचना नही कर सकते शायदि आमारी किसमत में यह सभ लिखा था। इस के बाद आया 1995 की विभीषिका इसके ऐक दशक बद होता हैं शेख हशीना का आगमन, वही जानी पहचानी जजबाते और साथ ही साथ हमारी (हिंदुओ) का आवाजे अल्पसंख्यक की आवाजे हो जाना…वही लाल फाल की टांगाईल साडी और ममता भरा चेहरा…वे अवामी लिग में उग्र तरिके से आईं, स्नेह से हिंदुओ ने उनहे अपनाया, उनके साथ खडा हूआ था, आपना समझ के। 90 के दशक आते आते ही शहीद जननी जाहानारा इमाम की लोकप्रियता आसमान पर थी, ऐक जन नेता की तरह आम दिलो में अपनी जगह बना ली थीं, हमारी अपनी शेख हसीना के लिऐ शायद यह  कुछ समीकरणो की चूक थी और उनके जन नेता होनी की सबसे बडी अडचन। उस वक्त शेख हसिना अपना निजी समिकरण के तहत उस समय बहूचर्चित लेखक मोतिउर रहमान रेंटूर की लिखी हूई पूस्तक आमरा फासी चाई (हम फासी चाहते है) में दर्ज की हूई सचाई को दबाने में कोई कसर नही छोडी थी. इस किताब से जाना जाता हैं कि हमारी प्रिय परमस्नेहि शेख हसीना भारत में बाबरी मसजिद के विधंश के परिपेक्ष में आपने निजी फायदे हेतु पैसो के जोर ते किस तरह ढाका तथा बंगलादेश के अन्य शहरो में हिंदुओ के घर तथा मंदिर जालाने के निर्देश दिऐ। और हूआ भी कुछ ऐसे ही था- हिंदुओ के घर बार तथा मनदिरो को जलाकर ऐक अनारजकता फैलाई गई थी पूरे देश में। हसिना तब हिंदुओ के साथ खडी थी, सहानुभूति दिखाई थी और यह समझाया था कि यदि अवामी लिग हूकूमत में आई तो यह सब बंध होगा, इस खेल में वे सफल हूईं थी। (आमरा फासी चाई किताब पर 1996 में आवामी लिग की हूकूमत ने प्रसिबंध लगा दिया था ) शहिद जननि जाहानारा ईमाम नेत्री नहीं बनी या नहीं बन सकी, तब के बाद शेख हसिना हमारी नेत्री और हमार गर्व। 1996 से 2001 तक वे सत्ता में रही, इस दौरां हमे कया मिला हमने कया खोया यह सभ हम जानते हैं। 2008 में फिर वे सत्ता में आईं इसी के वही हमारी रक्षक रहीं। खालिदा जिया और ऐरशाद नें इसलाम को राष्ट्र धर्म करार दिया जिसकी सहमती हमारी प्रिय हसिना ने भी दी, इसका मतलब यह हूआ की कोई इसे बदल नही सकता। इसके विरुध हम प्रशन नही उठा सकते। देश द्रोही कहलाऐंगें । बंगलादेश में धर्मनिर्पेशता और असामप्रदाईकता अपनी आखरी सास ले चूकी। हिंदु भले ई राष्ट्रवाद या आजादी की लडाई की विर गाथा कयूं न गाते रहे उनकी किसमत में तो शुन्य ही हैं। मूझे तो मूक्तियूद्ध चेतना से दुख ज्यादा होता हैं। 1971 मे आजादी के बीज हिंदुओ ने बोऐ थे, 100 प्रतिशद आजादी के कट्टर पक्षधर थे। संविधान नें हमे दुसरे स्तर का नागरिक बना दिया। हम माने या ना माने यह अब अपना अपना वेक्तिगत मसला हैं। मदरासा बोर्ड में बी-ऐन-पी-जमात सरकार से ज्यादा अनुदान हसिना सरकार का रहा हैं, यह मदरासा से निकले छात्र कया शुसिल समाज की नुमाईंदगी करेंगे….2012 में पाथघाटा, हाठजाबी, बागेर हाठ, दिनागपूर , चिचिर बंदर में अनुउत्तेज्त हिंदूओ के घर जलाना, लूटना, मंदिर तोडना हूआ पर  हमारी हसिना ने झुटे दिलासे तह नही दिऐ। रामू वाक्ये में वे पहाडो तक दौड के गईं कयूंकि वहां अनुदान का मामला था, हिंदुओ के साथ भला वे कयूं रहें…कया हैं हिंदुओ में …विश्वजित दास की हत्या की छात्रों ने,  हसीना जी ने जाच पडताल तो की नही ,कभी भी परिवार के पास नही गईं सहानुभूति के दो लफज बोल्ने के लिऐ विश्वजीत के घरवालो के समक्ष। कया यह सभ इस लिऐ की विश्वजीत हिंदु था…हिंदु मरने से ही क्या या जिने से ही क्या…ब्लागर राजबिर खे घर जाने का वक्त है उनके पास कयूं की वे पहले मूसलमान हैं और फिर देशप्रेमी ब्लागर, और विश्वजीत तो पहले था ऐक हिंदु , बाद में मेहनतकश बदकिसमतऐक कथन हमारी नेत्री हमेशाहि दहूराती रहती हैं –अपने पिजनो के खोने का दर्द मैं  महसूस कर सकती हूं ….हो सकता हैं वे समझती हों पर घर-बार तथा धार्मिक उपासना का दर्द वे नहीं समझेंगी, बहन, मां, बेटी के बलात्कार का दर्द आप नही समझेंगी। 2001 से लेकर 2006 तक हूऐ अल्पसंखयको पर हूऐ अत्याचार का कोनूनी लेखा झोका लेने की बात आपने की थी, क्या उनहे आपने न्याय दिया। नही अपने उनसे न्याय नही किया। यदि उस दिन यदि इस अत्याचारो का हिसाब लिया गया होता तो आज जो हमारे घर-बार या मदिर तोड रहे हैं उन्हे भी इस बात का डर रहता कि हमारा भी कभी विचार होगा, हमारा भी हिसाब लिया जाऐगा। यह सिधा सा समिकरण हैं, नही समझपाने की कोई बात हैं ही नही । ऐक विशाल राजनितिक खेल रचा जा रहा हैं।

हिंदु यदि मार भी खाते हैं तो उनके पास दो राहें है….

  1. सर निचा करके अपने ही देश में गैरों की तरह रहें
  2. पानी कि किमत पर अपने जमिन जायदाद बेछ कर हिंदुस्तान या ओर किसी मूल्क में पलायनि कर जाऐं।

यदि पहला विकल्प लिया जाय तो फायदा अवामी लीग का हैं। अपनी सरकार होते हूऐ भी इसने जुल्म…बी ऐन पी जमात आते ही तो हमे टूकरे टूकरे कर दिये जाऐंगे।।।उसी लिये भाई वोट अवामी लिग को ही देना हैं और किसी भी मूल्य पर अवामी लीग को ही हूकूमत में लाना हैं .

यदि फिर दूसरा विकल्प हिंदु लेते हैं तो भी लाभ अवामी लिग का ही हैं- पानी की किमत जो जमिन जायदादे बिकेंगी या फिर इस घोर विपती के दिनो में जो अवामी लिग के कर्यकरता बडी दया से रात के अंधेरे में बार्डर पार कराऐंगे , जमिन जायदाद का हक भी उन्ही अवामीलीग सथानिय नेता का होगा। इत्हास भी यही ही कहता हैं। नहीं तो अवामी लिग की स्थानीय अकाईंया लग भग हर वार्ड में हैं, प्रशासन के साथ कयूं नहीं वे हिंदुओ के हिमायत में खडे हूऐ। कयूं नहि रात के अंधेरे में सरेआम मंदिर – घर तबाहि करने वालो को सरेआम मारा-पिटा नही गया। किस आधार पर मूल्क के गृह मंत्री कहते हैं कि परिसतिथियां नियनत्रं में हैं ….आज हमें गम्भीरता से सोचना होगा, हम चारो तरफ से शत्रूओ से घिरे हूऐ हैं- दाऐं बाऐ सामने या पिछे। केवल उपरवाले ईश्वर पर ही भरोसा हैं। यहां पर अभी बंगलादेश में दो कडोड हिंदु हैं – यह भी कोई इतनी कम संख्या नही हैं, काफी उन्नत देशो से भी जादा। यदि ऐक बार हम ऐक हो जाऐं , अपने भेद-भाव भूल कर अपने अस्तितव की लडाई लडने के लिऐ त्यार हो सके हिमत करके बोल सके तो समूरी राजनेतिक पार्टियां भले वे अवामी लिग हो, जमात हो या फिर बा ऐन पी या जमात – हमारे पैर चूमेंगे। हमारी इच्छा शक्ति और संकल्प हैं उसे काम लेना पडेगा, हमारे में जो सच्छा देशप्रेम हैं और जो सच्चाई हैं, हमारे में जो निष्ठा हैं यदि हम इसे ऐकत्र कर पाऐ, ईश्वर का आर्सिरवाद हमारे में फैल जायेगा। पर उस के पहले हमे यह घोर विपत्ती के दिन पार करने होंगे। ऐक साथ होन पडोगा। जमात हो, बीऐनपी हो या फिर जतिय पार्टी या अवामी लिग हो , जो हमे उपेक्षित करेगा, हमारे घर मंदिर तबाह करेगा, वही हमारा असतित्व का शत्रू होगा। इनके विरूध का तरिका ढूंड लिकालना पडेगा। इनहे निशानदेहि करना पढेगा। यदि सौ लोग हमारे घर जलाने आते हैं तो उसी चिता में उनके भी किसी ऐक को जला देना पढेगा। नहि तो हमारे लिये अत्मरक्षा के हेतु पूलिस की गोलियो के सवाई कोइ सहारा हरा भी नही बचा रहेगा । बास की लकडीया और उनके द्वारा जलाई गई आग ही हमारे हथियार हैं। हमे अपने पैरो पर खडा होनो होगा भले कोई हमारे साथ खडा हो या ना हम दो कडोड को ऐक साथ खडा होना पढेगा। जागो भाइ जागो चलो मरना है ही तो लड के मरें , जियें तो संमान से जियें ….हरी ओम

(नोट- अंधे अवामी लीग समर्थको से माफी चाहता हूं , दिवाल से पिठ लग चुकी हैं, पेट और पिठ ऐक हो गईं हैं और बरास्त नही हूआ सो उगाल दिया)

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