कब होगें अपने मूल्क के

कब होगें अपने मूल्क के

सिंध या फिर पाकिस्तान में बचे हूऐ हिंदु ऐक ऐसे चकर्वियूं में फस चूके हैं जिस से निजाद पाना इतना भी आसान नहीं हैं जैसे भारत में आम तोर से समझा जाता रहा हैं। हमारी पिड्ही जिसने कभी भी सिंध नही देखा, सिंध या पाकिस्तान में हिंदुओ के समक्ष नहीं रहे, सिंध या पाकिस्तान में ऐक हूंदू होने का अहसास नही महसूस किया, अपने ही खून के रिशते रखने वालो से बेईजत होने का जख्म नही सहा यह ऐक अभूतपर्व अहसास हैं जिसे सही रूप में समझना शायदि हमारे क्षमता के बाहार ही हैं।

पाकिसातन वाले भूअंश में वेसे देखे तो जूल्म कोई नऐ नही हैं। सिंध में हिंदु तो 712 से जूल्मो के शिकार रहे हैं। पर जिस हालत में पिछले 65 वर्षो में अपना डरावना चहरा दिखाया वह किसी को भी शर्मसार करने के लिऐ काफी हैं। सिंध मे हिंदु (जहां आज भी पाकिस्तान के 95 प्रतिशद में हिंदु रहते हैं) भले किसी भी जाती का हो, किसी भी तब्के का हो किसी भी इलाईका का हो – हिंदु होना के अहसास से बखूबी वाकिफ हैं।

सिंध में हिंदुओ से कैसा सलूक किया जाता हैं, सिंध में सामाजिक या राजनितिक तोर कैसे हैसियत हैं, सिंध में बचे हूऐ हिंदु सिंधी क्यूं पलायनि के लिऐ इतने विचलित दिखते हैं, सरकारी इरादो की कैसी प्रतिक्रिया रही उनके  के हेतु, आम सिंध में मूसलमान सिंध में हिंदुओ के साथ कैसा वहंवार रहा हैं और सिंध के हिंदु , हिंदुस्तान हूकूमत से कया उपेक्षा रखते हैं – यह ऐसे सवाल हैं जिसके जवाब हिंदु तभी दे सकता हैं जब वह वे खोफ हो और बडी  बात सिंध के बाहर हो। सिंध में हिंदु किस दहशत में रहते हैं इस बात का ऐहसास तब मिलता है जब वे शोसल मीडिया में जहां काफि कुछ वेखोफ कहां जा सकता हैं वहां पर किसी भी हिंदु की मूह खोलने की हिम्थ नही जुटा पाता….

ऐसा देखा गया हैं कि सिंध पलायन सिंधी लोहाणा (सिंधीयोका का वेवसाई समूदाय) सिंध की हालतो पर खामोश ई रहा है शायदि उनहे ऐक पाकिस्तान होने और भारतिय ऐजेसिंयो से परेशान होने खा खोफ रहता हैं। उनका डर आशांकाऐ बेबूनियाद भी नही हैं। ऐसा देखा गया हैं कि पलायनि किये हूऐ पाकिस्तानी हिंदु ऐजेंसियो के द्वारा परेशान किया गये हैं यह परेशानी तब तक नहीं टलती हैं जब तक उन भ्रष्ट सरकारी अधीकारियो के जेब न भरे जाये। खैर अहमेदाबाद में मूझे इतिफाक़ से ऐसे श्री मिर्मलदास तथा उनके परिवार से संपर्क करने का मौका मिला जो यहां 20 साल से रह रहा हैं (बिना नागरिकता के) और अहम बात कि वे सिंध में हूऐ अत्याचारो के प्रसंग में कुछ भी छूपाने की कोशिश नही की।

अपने बारे विवरण देते हूऐ श्री निर्मलदास ने कहां कि – में सिंध प्रांत के लाडकाणे शहर से हूं। गावं रतोतिल। सिंध में हिंदुओ की लिऐ हालते 1960 से के बाद ही फिरने लगी थीं। मेरी जिंदगी में पहिली बार हडकम तब आया जब मेरे दो सोलों को दिन दहाडे भरी बजार में कतल किया गया। ऐक ने उस घटनास्तल पर ही दम तोडा दूसरे को कराची ले गऐ पर उसे बचा न सके। वह 21 दिन तक मोत से लडता रहा पर फिर अपनी हार मान ली। बात वही पर ख्तम नही हूईं। मेरे ससूर जी को अग॒वा किया गया जिसे हमने भारी रकम देकर आजाद कराया और मूझे भी अग॒वा किया गया पर मैं किसी भी तरह भाग निकलने में कामयाब हूआ। हम अकेले नही हैं जिस्से ऐसे जूल्म हूऐ हों। सिंध में हम घरो से निकल कर सभजे ज्यादा धयान इस बात को देते हैं कि कही कोई हमारा पिछा तो नही कर रहा हैं। रात को अकेले निकलने का तो सवाल ही नही पैदा होता हैं। हम इस की पूरी कोशिश करे की हम हर नजर से मूसलमान ही दिखे – वेश भीषा या फिर शकल से कहिं किसे यह ना लगे कि हम हिंदु हैं।

श्री निर्मल दास हिंदुस्तान आने के हेतु कहना था कि वे अहमेदाबाद,  सिंध रहते ही तिन महिने के विजा पर आये थे आर फिर तिन महिने और बडाया था। यहा मूझे अमन आराम तथा सकून मिला। मैं तो मोत कबूल करूंगा पर फिर पाकिस्तान नहीं लौटूगां।

विभाजन के बाद जन्में सिंधी जिन्होने बचपन से हि सिंध में धर्निपेक्षता के मिसाल के बडे बडे किस्से सुनते सुनते बडे हूऐ हैं यह ऐक निहायत आश्चर्य चकित करने वाले मजर हैं और उस्से भी परेशान करने वाली बात तो यह हैं कि यह सब ऐक ऐसे ईलाको में हो रहा हैं जहां पर सिंधी मूमसलमानो की ब़डी तादाद रहती हैं। श्री निर्मलदास का कहना था किस लाडकाणे में विभाजन के बात भी काफी संखया में हिंदु रहा करते हैं अप बहूत कम या ना के बराबर ई हिंदु बचे हैं। जबरनि धर्म परिर्वतन, आगवाउ, कत्ल में हिंदूओ जा जिना मूशकिल कर दिया हैं। हम मूसलमानो की तरह डाड्ही बडहा के रखते हैं जैसे किसी अंजाने को समझ में नही आये तो हम वाक्ई मूसलमान नही हैं। सिंध में हालते इनती खराब हैं की हम प्रदर्शन तक नही कर पाते कहिं मूसलमानो को ऐसा ना लगे कहि हम उनहे बदनाम तो नही कर रहे हैं।

ऐसे देखा जाय तो हिंदुस्तान – पाकिस्तन जे बिच ऐक समझौता पहिले मोजोद हैं जो दोनो देशो के धर्मिक अल्पसंख्यको के इंसानी हको के हेतु वजूद में लाया गया था पर ना हिंदुस्तान की हकूमत ने पाकिस्तान से  इस पर नाअमल होने पर आवाज उठाई हैं और हिंदुस्तान का सिंधी समाज। गुजरात के अहमदाबाद के सरदार नगर निर्वाचन छेत्र जहां पर कोई कितना भी बढा राजनेता ना हो इपनी विजय तभ ही सुनिश्चित कर सकता हैं जब सिंधी मतदाताओ का साथ हो वहा पर भी सिंध या पाकिस्तान से पलायन किये हूऐ हिंदुओ के मसले कभी चुनावी मुद्दे नही बन पाऐ। पिछले साल यहां पर अंतर्राष्ट्रिय सिंधी सनमेलन आयोजित हूऐ जहां आड॒वाणी, मोदी समेत काफी अगवानो के शिर्कत के बावजूद पाकिस्तान से पलायन के मूद्दे का जिक्र तक नही हो पाया।

पलायन कभी आसान नही होता और हर पलायनि के अपने मसले रहे हैं। जब कि 1947 के पलायनि के वक्त लोग बस अपने अंग को ढकने वाला ऐक ही वस्त्र ही बचा पाऐ थे पर 1954 के बाद की पलायन में नागरितका ऐक बहूत बडा मसला रहा हैं। किसी भी पलायनि किये हूऐ हिंदु को 7-10 के बाद नागरिकता कि प्रक्रिया शुरु होती हैं जो 4-5 साल चलति हैं। किसी किसी राज्यो में मिल भी जाती हैं पर किसी में (जिनमे राज्य सरकारे इस में दिलच्सपी ना लेती हो ) मसलनि गुजरात में 30-30 साल बाद भी नागरिकता नहीं मिलती उपर से रिशवत खोरो सरकारी अफसरो का मसलो सो अलग मूसिबत।

गुजरात में सरकारी अफसरो के लिऐ सिंध से पलायनि किये हूऐ हिंदुओ ने मानो आसान कमाई ऐक बडा जरिया खोल दिया हैं। अहमेदाबाद में डा रमेश (नाम बदला हूआ) का कहना था की हम 20-25 पाकिस्तनी हिंदु क्या कही ऐकत्रित हो गऐ अफरसो के फोन आने शुरु हो जाते हैं, और फिर पुछताछ का ऐक दोर शुरु हो जाता जिसमे  यदि कोई कच्ची नस वाला निकल जाता तो अफसर अपनी कमाई का अवसर किसी भी हालत में नही गवाता। वे तभी शान्त होते जब उनकी जेबे भरी जाती। श्री निर्मलदास के बेटे का कहना था कि हर अफसर जब भी बुलाते हमे सारा सारा दिन बैठाकार रख देते। ना सिर्फ हमे पर हमारे बीबी बच्चो और यहां तक की हमारे गेरेंटर तक को भी। छोटी छोटी बात पर फटकाते और बे इजत करने में पल भर की देर नहीं करते। अजब जैसी बात तो यह हैं कि यह सभ ऐक ऐसे राज्य में होता रहा हैं जिसे हिंदुत्व की प्रयोगशाला तक कहा गया हैं। यहि नही पलायनि किये हूऐ हिंदु बताते हैं पूरे हिंदुस्तान में गुजरात अकेला राज्य हैं जहा पर पाकिस्तान से पलायन किये हूऐ हिंदुओं को अपना दीर्घ कालिन विजा ना बड्हा पाने के कारण वापस तक जाना पडा हैं पर इस बावजूद भी सिंधी समाज खामोश, हिंदुओ की बडी बडी लडाई लडने वाले हिंदु नेता भी खामोश।

सिंध या पाकिस्तान से हो रही पलायनि करने वालो के लिऐ समस्या  यह भी हैं कि ऐक पलायत मूसलमानो के द्वारा भी हो रही हैं। चूकि पाकिस्तान (सिंध) और राजिस्तान की सर्हद की तरह बंगलादेश की सर्हद सिल नही हैं पलायनि ना सिर्फ आसान हैं पर गैरकानूनी भी। और फिर वोट बैक की सियासत ऐसे मसलो को जल्दी हल भी नही होने देती। कयूं कि बंगलादेश से पलायनि गैर कानूनि हैं, बिना किसी कागजात के हैं सरकारी अफसरो को पता भी नही चलता कि कोन बंगलादेशी हैं और कोन हिंदुस्तान का बंगाली मूसलिम नागरिक। ऐक तरफ आसानी से हूआ पलायनि तो दुसरी तरफ सालो तक इंतजार बाद मिला विजा और नागरितजा की समस्यांऐ और उपर से सरकारी अफसरो की मांगे सो अलग मूसिबत।

सन् 2005 में भारत सरकार नागरिकता के नियमों में बडा फेरबदल करते हूऐ नागरिकता देने का हक जिला मेज्स्ट्रेट से झिन कर गृह मंत्रालय को सोंप दिऐ। इस्से आसम या बंगाल में बंगलादेशी मूसलमानो को आसानी से मिल रही नागरिकता मिलनी तो बंद हो गई पर पाकिस्तान से पालायनि कर रहे हिंदुओ की सम्सया ओर भी जादा बढ गई, अब उनहे अपने नागिरकता के हेतु दिल्ली तक के धके खाने पडते।

साल 2011 में धार्मिक विजा को भी दिर्घकालिन विजा में बदल पाने की अनुमती हेतु आदेश के बाद भारत सरकार ने को नोटिफिकेश जारी की थी उस में साफ लिखा गया था कि भारत सरकार ने पाकिस्तान में हिंदुओ से हो रहे अत्याचारो की जाच कि हैं और इनहे सही पाया हैं। भारत सरकार भी 1954 से सामान्य विजा को दिर्घ कालिन विजा में बदलने की अनुमती दे रही हैं वह भी इस पर की वहां पाकिस्तान में हिंदुओ को धार्मिक भेदभाव का निशाणा बनाया जा रहा हैं पर नागरिकता का जब तक कानुन की जब बाद आती हैं तो दोनो पलायनि ऐक करके देखे जाते हैं।

भारत सरकार के द्वारा प्रकाशित अधीसुचना

भारत सरकार के द्वारा प्रकाशित अधीसुचना

ऐसी बात नही हैं कि संसथाऐ नहीं है जो पाकिस्तानी हिंदुओ को लिऐ काम नही कर रही हैं आम तोर से हिंदुस्तान में सिंधी समाज इसे ऐक समस्या ही नही मानता और यह ही कारण हैं कि पाकिस्तानी हिंदु के मसले कभी सिंधी समाज के मसले नही बने। इस के अलावा सिंधी समाज का जातिवाद भील मेघवार वगिराह की लडाई लडने वाले सिमांत लोक संघटन के सर्बराह हिंदु सिंह सोढा को अपाने ऐक हद तक रोका हैं जब कि उनहे लग भग हर सिंधी उनके काम से वाकिफ कयूं ना हो। हा अपनी नागरिकता के लडाई के हेतु कुछ उची जाती वालो ने जरूर लाभ लिया हैं पर जब उस संसथा को अपनाने के लिऐ कद्दपी तयार नहीं हैं। उनका काम कया निकला वे ऐक तकफ और संसथा दुसरे तरफ।

अहमेदाबाद में जितने भी सिंधीयो से मेरा संपर्क हूआ लग भग सबका यही विचार था कि यह ऐक बडी समस्या हैं पर इस समस्या के लिऐ आगे बढ कर मूकाबला करने के लिऐ शायदि ही कोई त्यार हैं। उनके लिऐ उनकी लडाई और कोइ लडे वे महज साथ ही दे सकते हैं।

मलतब साफ हैं अंग्रेजो के दिनो जिस मोकाप्रसती के चलते हमने पूरा सिंध ही गवा बैठे वही मोका प्रस्ती पूरे शबाब में सिंधीयो मे झलकती हैं। जब तक हम अपनो के दुखो को समझे, अपनी गलतियो से सबक ले पाकिस्तानी हिंदुओ को अपने ही मूल्क में ऐक विदेशी की हमेशा ऐजेंसि के शक और सरकारी अफसरो के रहमो करम में ही रहना हैं।

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